Monday, January 11, 2010

shahar

चलो शहर से चलें ये शहर हसीं नहीं

यहाँ का मौसम भी पहले से बहतरीन नहीं

लोग चलते नहीं उड़ते हैं यहाँ शामो सहर

हो जैसे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं

गैर की छोडिये अपनों पे सितम ढाते हैं

यह वोह काफिर हैं जिन्हें खुद पे भी यकीन नहीं

लोग जो भीड में खुद को भी खपा देते हैं

मैं ऐसी भीड़ का कोई तमाशबीन नहीं

सुबह भी फीकी है है शाम भी फीकी यारों

गाँव सा इक भी मौसम यहाँ रंगीन नहीं .

                                                          ११/०१/१०

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