चलो शहर से चलें ये शहर हसीं नहीं
यहाँ का मौसम भी पहले से बहतरीन नहीं
लोग चलते नहीं उड़ते हैं यहाँ शामो सहर
हो जैसे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
गैर की छोडिये अपनों पे सितम ढाते हैं
यह वोह काफिर हैं जिन्हें खुद पे भी यकीन नहीं
लोग जो भीड में खुद को भी खपा देते हैं
मैं ऐसी भीड़ का कोई तमाशबीन नहीं
सुबह भी फीकी है है शाम भी फीकी यारों
गाँव सा इक भी मौसम यहाँ रंगीन नहीं .
११/०१/१०
Monday, January 11, 2010
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